स्वतंत्रता के बाद भारत में किन रियासतों का विलय हुआ ?

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स्वतंत्रता के बाद भारत में किन रियासतों का विलय हुआ?

Bharat ki Riyasat | हमारे भारत देश को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी। 72 वर्षो बाद जब हम स्वतंत्र भारत को देखते है तो हमे भारत में 29 राज्य और 7 केंद्रशासित प्रदेश नजर आते है। परन्तु आजादी मिलने के समय ऐसी परिस्थिति नहीं थी। यदि आप इतिहास की ओर देखें तो जानेंगे की Bharat me kitne Rajya hai तब जवाब कुछ और मिलेगा। ब्रिटिशर्स करीब 200 वर्षो तक भारत पर शासन करने के बाद अपने देश लौटे थे। भारत की स्वतंत्रता के समय भारत में 3 अलग-अलग प्रकार के क्षेत्र हुआ करते थे –

  1. ब्रिटिश भारत के अन्दर आने वाले क्षेत्र
  2. देशी राज्य, जिन्हे Princely state भी कहा जाता था
  3. फ्रांस और पुर्तगाल के अंतर्गत आने वाले ओपनिवेशिक क्षेत्र (चंदन नगर, गोवा)

स्वतंत्रता मिलने के पश्चात भारत सरकार का लक्ष्य इन क्षेत्रों को एक ही राजनैतिक इकाई के अंदर एकत्रित करना था। उस समय भारत में करीब 565 Riyasat हुआ करती थी। जब माउंटबैटन ने प. जवाहरलाल नेहरू के सामने भारत की आजादी का प्रस्ताव रखा था तो उसमे कुछ इस तरह का प्रावधान था की ये Riyasat भारत या पाकिस्तान में से किसी भी विलय को चुन सकती है। और ये दोनों देशों में से किसी को भी न चुन कर स्वतंत्र रह सकती है। ऐसे में उस समय के उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बड़ी की कुशलता और चतुराई से इन सभी Riyasat को भारत के परिसंघ में जोड़ा था। हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ की Riyasat ही ऐसी थी जो भारत का हिस्सा बनने में इच्छुक नहीं थे। इनके अलावा 562 Riyasat भारत का हिस्सा बनने को तैयार हो गयी थी और अपनी स्वीकृति भी दे दी थी।

Bharat ki Riyasat
Image Source : Google / Bharat ki Riyasat

जूनागढ़ पाकिस्तान में विलय करने की घोषणा कर चूका था। वहीं कश्मीर स्वतंत्र बने रहना चाहता था। सरदार पटेल को पता था की भोपाल अंत में भारत का हिस्सा बन जाएगा। हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर का विलय सेना की मदद से कराया गया और भोपाल स्वत: ही भारत का हिस्सा बन गया था।

हैदराबाद

जब भारत और पाकिस्तान विभाजित हो गए और सरदार वल्लभ भाई पटेल सभी रजवाड़ों को भारत से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। उस समय हैदराबाद ने यह फैसला लिया था की यह एक स्वतंत्र देश बनना चाहता है। हैदराबाद की Riyasat भारत की सभी Riyasat में से सबसे समृद्ध रियासत था। यहां के निजाम उस्मान अली खान का ही फैसला था की हैदराबाद स्वतंत्र रहेगा। Hyderabad के पास अपना रेल, एयरलाइन नेटवर्क था, खुद की सेना थी। जहां एक और 15 अगस्त को भारत पूर्ण रूप से स्वतंत्र हुआ, वहीं हैदराबाद ने भी खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। इस हालात में वल्लभ भाई पटेल ने लार्ड माउंटबैटन से सलाह परामर्श किया|

लार्ड माउंटबैटन की सलाह यह थी की बिना किसी सेना के प्रयोग से ही यह मसला सुलझा लिया जाए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत ने हैदराबाद को प्रस्ताव भी भेजा लेकिन हैदराबाद के निज़ाम ने इसे मानने से इंकार कर दिया। एक तरफ वहां हिन्दू मुस्लमान में साम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गए, वहीं दूसरी ओर वहां का निजाम पाकिस्तान में विलय करने की बात कर रहा था। जैसे ही भारत सरकार को यह बात पता लगी, भारत ने हैदराबाद को अपने कब्जे में लेने का decision लिया। 1948 में 13 सितम्बर को भारत और हैदराबाद में लड़ाई शुरू हुई और यह 18 सितम्बर तक चली। अंत में हैदराबाद की सेना ने भारत की सेना के सामने घुटने टेक दिए और भारत का हिस्सा बनने को तैयार हो गए।

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Image Source : Google / Bharat ki Riyasat

कश्मीर

जम्मू कश्मीर राज्य में हिंदू साशक का राज था और वहां की अधिकतर जनसँख्या मुस्लिम थी। यहां के राजा की इच्छा थी की कश्मीर भारत का हिस्सा बना रहे और यहां की सम्प्रभुता बरकरार रहे। यहां पर कश्मकश की स्थिति करीब डेढ़ महीने तक बनी रही और राजा हरिसिंह फैसला नहीं ले पा रहे थे। पाकिस्तान ने भी कबायली लडाकू भेज कर कश्मीर पर हमला करवा दिया। ऐसे में राजा हरिसिंह जम्मू पहुँच गए और सरकार को सारे हालात के बारे में बताकर भारत से विलय करने पर सहमत हो गए। इसके पश्चात भारतीय सेना ने कश्मीर में जाकर पाकिस्तानी क़बायलिओ को मार भगाया।

जूनागढ़

जूनागढ़ में स्थिति कश्मीर से उल्ट थी। यहां का शासक मुस्लिम था और अधिकांश जनसँख्या हिन्दू। एक और जहां यहां के शासक ने पाकिस्तान में विलय करने का फैसला कर लिया था, वहीँ दूसरी और यहां की जनता भारत में ही बने रहना चाहती थी। ऐसे में वल्लभ भाई पटेल खुद जूनागढ़ गए और वहां की जनता के बीच जनमत संग्रह कराया। जब इसका फैसला आया तो जनता की बात मानी गयी और जूनागढ़ भारत में विलय हो गया और यहां के शासक पाकिस्तान चले गए।

भोपाल

Bhopal Riyasat में नवाब हमीदुल्लाह खान शासक थे और उनकी इच्छा Pakistan में जाकर विलय करने की थी। इसका कारण था उनकी मुस्लिम लीग के नेताओं से दोस्ती। हालांकि यहां की जनता पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी। इस बात की जानकारी सरदार पटेल को भी थी, इस वजह से वो भोपाल के विलय को लेकर ज्यादा चिंतित भी नहीं थे। हालांकि यहां के नवाब और भारत सरकार के बाद लम्बी बातचीत हुई और अंत में भोपाल को भारत में विलय करना पड़ा। यहां पर किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई की आवश्यकता नहीं पड़ी।

इस तरह सरदार वल्लभ भाई पटेल और वी पी मेनन के प्रयासों से भारत एक जुट हुआ और आज हम भारत को एक महान और यूनाइटेड देश के रूप में देखते है।

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